Wednesday 26 February 2014

Ehsaas

कहानी

एहसास


           बरसात के दिनों कि मानसूनी शाम थी. मैं पार्क में उदास बैठा था. हालाकि सिविल जज की परीक्षा मैंने अच्छे से दी थी. और सिविल जज के पद के लिए मेरा चयन होना लगभग तय था. फिर भी उदास था.

            आसमान पर बादलों की छटा होने से अँधेरा-सा लग रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे बहुत तेज़ वर्षा होने वाली है. पार्क से कुछ कदम की दूरी पर नाला ऊफान मार रहा था. ऐसे भयानक माहौल को देखकर मन में और उदासी छा जाती थी. पुरानी बातें मन में इस कदर लहरों की तरह तूफ़ान लाती थी कि मन उदास से भी ज्यादा उदास हो जाता था. सब था मेरे पास, सभी चीज़ें व्यवस्थित, फिर भी मैं उदास था. अपने परिवार वाले दुश्मन लगने लगे थे.

             आज भी वो बात ज्यादा पुरानी नहीं लगती मुझे। मैं और योजना भाभी दसवीं कक्षा में पढ़ते थे. मैं जाने क्यों उस समय योजना भाभी की तरफ आकर्षित था. जाने क्यों पर मन ही मन में मैं योजना भाभी को चाहने लगा था. पर मैंने कभी उन्हें अपने दिल की बात नहीं बताई। क्योंकि मैं जानता था कि उसका जवाब 'न' ही होगा। मैं और वह कभी दोस्त भी न बने थे. यहाँ तक कि हमारी ज्यादा कभी बातचीत भी न हुई थी. फिर भी उनके(योजना भाभी के) स्वभाव से मैं मोहित था.

              कभी उनसे अपने दिल की बात कहने को मन बनाता तो कभी जाति में ऊंचे होने की बात  सामने आती, कभी खुद की कुरूपता आढ़े आ जाती। फिर एक पल को सोचता योजना भाभी भी कोई खास खूबसूरत नहीं है. पर आखिर में यही निर्णय निकाल पाता कि मैं उनसे कुछ न बोलूं।

               समय बीतता गया. इसी कश्मकश में कि 'बोलूं या नहीं' में दो वर्ष बीत गए. फिर स्कूल के दिन ख़त्म हो गए. मेरी बात मेरे मन में ही रह गई. कॉलेज की पढ़ाई के समय सोचा कुछ अच्छी नौकरी में आ जाऊँ, फिर योजना भाभी के बारे में पता लगाऊंगा। नौकरी में आने का सपना तो पूरा हो रहा था, पर योजना भाभी को ढूँढ़ने का सपना मैं चाहकर भी पूरा न कर पाया। अचानक मेरे भैया ने लव मैरिज कर ली थी. उस दिन मुझे बड़ा धक्का-सा लगा था, मेरे भैया ने जिस दिन मुझे उनकी प्रेमिका के बारे में बताया था. मैं दिल पर हाथ रखकर रह गया था. वह जिसे अपनी प्रेमिका बता रहे थे वह योजना भाभी ही थी. मैंने दिल पर हाथ रखकर पूछा था- ''उसने(योजना भाभी ने) क्या जवाब दिया?'' 

               भैया ने बताया कि उनके प्रेमप्रसंग को एक वर्ष हो गया है. भैया ने जब मुझे उनकी प्रेमिका की तस्वीर दिखाई तो मेरा मुँह रोने की हालत में हो गया. योजना भाभी भैया के कार्यालय में ही काम करती थी. यहीं वे दोनों मिले और बात अब शादी तक पहुँच गई थी. मैं समझ गया कि मैंने बहुत देर कर दी है, भैया ने मेरे प्रेम पर रुकावट डाल दी है. मैं बड़ी कलह से दर्द को दबाए चुप था. भैया ने माँ-पापा की मर्ज़ी के खिलाफ योजना भाभी से शादी कर ली. योजना भाभी के स्वभाव से बहुत जल्द ही माँ-पापा ने प्रभावित होकर योजना भाभी को बहू के रूप में अपना लिया। पर मैं अभी तक योजना भाभी को भाभी के रूप में नहीं स्वीकार पाया था. 

               योजना भाभी ने मुझे पहली मुलाकात में ही पहचान लिया था कि वो और मैं साथ में पढ़े है. भैया को भी भाभी के मुझसे मित्रवत रहने में कोई संदेह नहीं था क्योंकि वे पहले से जानते थे कि हम पहले से एक-दूसरे को जानते है इसलिए इतने मित्रवत है. पर सच बात यही थी कि यह मित्रवत व्यवहार एकतरफा ही था. योजना भाभी ने मुझसे देवर-भाभी के समान मित्रवत बनने का रिश्ता बनाना चाहा। वह मुझमें स्कूल की सहेली को खोजती हुई-सी लगती थी. पर मैं हमेशा उनसे दूरी बनाये रहता था ताकि गलती से भी मेरे मन में कुछ गलत विचार न आ जाए. मैं इन दिनों बड़ा उदास हो गया था. क्योंकि शादी के बाद भैया अपने वैवाहिक जीवन में मग्न से हो गए थे. डिनर, सिनेमा आदि किसी भी गतिविधि की बात हो ,वे योजना भाभी को लेकर जाते थे. माँ-पापा तीर्थयात्रा पर गए हुए थे, हरिद्वार। मैं बड़ा अकेला महसूस करता था. या सच कहूँ तो मुझसे भैया और भाभी की नज़दीकियां बर्दाश्त नहीं होती थी. अभी भी भैया और योजना भाभी को बिना बताए घर से निकल आया था क्योंकि मैं सोच रहा था कि उन्हें मेरी कोई फिक्र नहीं होगी।

               अचानक मेरा ध्यान भटका। पीछे से शोर आ रहा था- ''जल्दी पार्क से निकल जाईए, नाला खतरे के निशान से ऊपर हो गया है.'' मैं शोर को सुनकर तुरंत भागा। आगे देखा नाला पुल के ऊपर से बह रहा था. पुलिस पुल खाली करवा रही थी. मैं भागा। घर पुल पार कॉलोनी में था. पुल पार कर ही रहा था कि अचानक तेज़ वर्षा शुरू हो गई. नाले का बहाव तेज़ हो गया था. मैं लगभग पूरा भीग गया था. मन में विचार आया- ''बह भी जाऊँ, तो किसे फिक्र होगी।'' थोड़ा आगे बढ़ा. अचानक पैर फिसलता, पर बच गया. पानी घुटने के थोड़े ही नीचे था. ठण्ड से पूरा शरीर कांप रहा था. मैंने डरते-कांपते पुल पार किया और उदास मन से भीगा हुआ घर की तरफ चल दिया।

                घर गया तो देखा, भाभी किचन में भैया के लिए डाईनिंग टेबल सजा रहीं थी. उस समय भाभी का ध्यान मुझ पर ज़रा भी नहीं गया था. मैं घृणित भाव से ड्रॉइंग रूम में से होता हुआ अपने बेडरूम में चला गया. अचानक पता नहीं कैसी बेहोशी किस्म की नींद लग गई. 

                अचानक मैं जागा। सिर पर बहुत ठंडक-सा अहसास हो रहा था. घड़ी में सामने मेरी नज़र गई. रात के दो बज रहे थे. मुझे ऐसा लगा जैसे बेहोशी से होश में आया हूँ. अचानक सर पे किसी के सहलाने की आहट हुई. मेरे मुँह से निकल पड़ा- ''माँ.''. क्योंकि इस प्रकार की सहलाहट माँ ही सर पर करती थी. अचानक सर पे से बर्फ  हटने का अहसास हुआ, मेरी सामने नज़र गई. भैया ने बर्फ की ठंडी पट्टी हटाई थी. मैंने सिर के ऊपर देखा। वह भाभी थी, योजना भाभी। मुस्कराते हुए मेरी तरफ देख रहीं थीं. मुझे देखकर बोलीं- ''कैसा लग रहा है, अब?''

                फिर भैया बोल उठे- ''कहाँ चले गए थे? शाम से तुमको ढूँढ रहा था. आज भाभी ने देखो खास तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद का खाना बनाया था. वह भी ठंडा हो गया. शाम से तुमको सरप्राईज़ देने की मेहनत में लगी थी, वह. क्या ज़रूरत थी बरसात में भीगने की.''

                अचानक फिर आगे की बात भाभी ने कही- ''पता है, तुम्हारा चयन सिविल जज के पद पर हो गया है. आज ही लेटर आया. इसी बात का सरप्राइज़ देने के लिए मैंने तैयारी की थी. तुम्हारे लिए शाम से डाईनिंग टेबल सजा रही थी. पर तुम उस समय घर में नहीं थे. तुम्हारे भैया तुम्हें शाम से ढूँढ़ने निकल गए. बाद में ये थके-हारे और परेशान घर आए तो देखा तुम अपने कमरे में लेते हो, बेसुद से. तुम्हें छू कर देखा तो पता लगा तुम्हें बहुत बुखार है, डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने इंजेक्शन दिया और कहा, तम्हें कुछ घंटों में होश आएगा। तभी से हम बैठे है.'' 

                तभी भैया बोले- ''जाओ तुम, ज़रा  मिठाई तो लाओ.''

                   योजना भाभी उठी और मिठाई लेने के लिए किचन की तरफ चल दीं. वह यह बोलते हुए कमरे से निकली- ''मजिस्ट्रेड साहब के लिए एक बीवी और मेरे लिए एक देवरानी ला दीजिए, बस. अब बहुत हो गई पढ़ाई।'' इस बात पर भैया और योजना भाभी, दोनों मुस्करा दिए.

                   मुझे ऐसा लगा जैसे माँ बहू को लाने के लिए कह रही है.

                   योजना भाभी मिठाई लेने चली गई थी और मैं बिस्तर पर लेटा मंद-मंद मुस्करा रहा  था.

.............................…………………………………………।


                                                                -अंकुर नाविक 

                                                             (www.ankurnavik.in)

No comments:

Post a Comment