श्यामों की सरपरस्ती में
अलसुबह के कोहरे में,
उन्मादी के पहरे में,
व्यस्तता की वो कश्ती है.
उबासी की गर्माहट में,
ठंडी हवा की आहट में,
उनींदी आँखें मेरी है.
परिंदों के कलरव में,
कल्पनाओं के सरवर में,
एक बेरंग-सा ठहराव है.
न वक़्त की कोई छाँव,
न जीने का कोई चाव,
बदरंग-सी दुनिया में,
अंधी दौड़ की पतवार.
उनीन्दें दिनों ने,
व्यस्तताओं के जिनों ने,
मुझे क्या दिया है.
तितलियों-से रंग खोये,
जिन्दगी के वन खोये,
तन्हाई के गमों के लिए,
जाने कितने जन खोये.
कभी दिन की संध्या में,
फुर्सत की नद्या में ,
कुछ देर पसरता हूँ.
तब कुछ यादों की लहरें,
कुछ खिलती सेहरें,
बड़ी मुश्किल से मिलती है.
सच दिखता है तब,
थकी नज़रों की ओट से.
तब सोचता हूँ खो जाऊं,
कहीं खुद को ही पा जाऊं,
इन संधलियों की बस्ती में,
श्यामों की सरपरस्ती में.
-...-
-Ankur Sushma navik ,
(my hindi poetry )
Ankur, tumhare naam ke sath"Sushma" kiska naam hai? Navik naam kisne diya?
ReplyDeletesir ji! Navik Mera Sir Name Hai and Sushma meri mummy kaa naam hai! maine socha sir name papa kaa lagate hai to name apne piche mummy kaa kyo nahi likh sakte, unka bhi to ansh hai mujhme , bas islie!
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