दिखाई नहीं देता
वो मज़हब के पिंजरों में इस कदर कैद है,
कि इंसानियत का मज़हब दिखाई नहीं देता.
वो सड़कों पर घूमते उसे ही ढूँढते है,
जो गुनाहगार घर में दिखाई नहीं देता.
सियासी इन खेलों में मसरूफियत ही इतनी है,
कि उन्हें मंज़र ये तबाही का दिखाई नहीं देता.
इज्ज़त का भ्रम इस कदर हावी है,
कि राधा-किशन का मंदिर दिखाई नहीं देता.
कलयुग के अर्जुन हर तरफ छाए है,
एकलव्य आज भी दिखाई नहीं देता.
मौहब्बत में जिस्म इस कदर हावी है,
कि है या नहीं रूह, दिखाई नहीं देता.
वो रोशनी की महफिल में इस तरह-से आये है,
कि साथ आया अन्धेरा दिखाई नहीं देता.
वो दरिया-ए-जहान में इस कदर भटके है,
कि किनारा कोई अपना-सा दिखाई नहीं देता.
शोहरतों को देखकर हैरान है वो तो,
उन्हें अपना ही सतहीपन दिखाई नहीं देता.
अंधे-बहरों का ऐसा मजमा है 'सुषमा',
कानों से कुछ सुनाता नहीं, आँखों से कुछ दिखाई नहीं देता ...
वो मज़हब के पिंजरों में इस कदर कैद है,
कि इंसानियत का मज़हब दिखाई नहीं देता.
वो सड़कों पर घूमते उसे ही ढूँढते है,
जो गुनाहगार घर में दिखाई नहीं देता.
सियासी इन खेलों में मसरूफियत ही इतनी है,
कि उन्हें मंज़र ये तबाही का दिखाई नहीं देता.
इज्ज़त का भ्रम इस कदर हावी है,
कि राधा-किशन का मंदिर दिखाई नहीं देता.
कलयुग के अर्जुन हर तरफ छाए है,
एकलव्य आज भी दिखाई नहीं देता.
मौहब्बत में जिस्म इस कदर हावी है,
कि है या नहीं रूह, दिखाई नहीं देता.
वो रोशनी की महफिल में इस तरह-से आये है,
कि साथ आया अन्धेरा दिखाई नहीं देता.
वो दरिया-ए-जहान में इस कदर भटके है,
कि किनारा कोई अपना-सा दिखाई नहीं देता.
शोहरतों को देखकर हैरान है वो तो,
उन्हें अपना ही सतहीपन दिखाई नहीं देता.
अंधे-बहरों का ऐसा मजमा है 'सुषमा',
कानों से कुछ सुनाता नहीं, आँखों से कुछ दिखाई नहीं देता ...
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